१. परिचय

यह विधि आपको अपने लैनक्स बक्से पर भारतीय लिपियों का इस्तेमाल करने के लिये जमाव में मदद करने के लिये लिखी गई है। भारतीय लिपियों का प्रयोग करने के लिये आपको एन॰सी॰एस॰टी॰, मुम्बई द्वारा निर्मित इण्डिक्स तन्त्र की संस्थापना करनी होगी। इण्डिक्स तन्त्र को मैंने ऍक्सोडस ग्नू/लैनक्स, रेड हैट लैनक्स व मैण्ड्रेक लैनक्स पर परीक्षित किया है। यदि किसी ने डेबियन पर इस तन्त्र को परीक्षित किया है तो कृपया मुझे बतायें, मैं इस विधि में उसे शामिल कर दूँगा। मैं एन॰सी॰एस॰टी॰ मुम्बई के श्री केयूर श्रौफ़ को शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ - उन्होंने मुझे अपनी देवनागरी-विधि के परिवर्तन व पुनर्वितरण की अनुमति दी।

कृपया ध्यान दें कि ऍक्सोडस ग्नू/लैनक्स में, जो कि सेञ्चुरियन लैनक्स, भारत के बढ़िया लोगों द्वारा निर्मित है, इण्डिक्स तन्त्र पहले से ही स्थापित मिलेगा, एन॰सी॰एस॰टी॰, मुम्बई और सेञ्चुरियन लैनक्स प्राइवेट लिमिटेड के बीच प्राविधि स्थानान्तरण सहमति की बदौलत।

आजकल उपलब्ध लगभग सभी बड़े ग्नू/लैनक्स वितरण कई अन्तर्राष्ट्रीय भाषाओं में स्थानीयकृत हो चुके हैं जैसे फ़्रांसीसी, जर्मन, स्पेनी, चीनी , अरबी आदि। इस विधि का लक्ष्य यह है कि आप अपने ग्नू/लैनक्स वितरण को अपनी पसन्द की भारतीय लिपि में स्थानीयकृत कर सकें। शुरुआत में ही आपको किसी भी भारतीय भाषा में स्थानीयकरण की जटिलता का अहसास होना चाहिये। किसी भी भारतीय भाषा का अक्षर इन्पूट अङ्ग्रेज़ी से अलग है। शायद सबसे बड़ा फ़र्क यह है कि अङ्ग्रेज़ी में हरेक कुञजी दबाने पर एक अक्षर छपता है, जिसका एक ही कूट होता है। लेकिन एक भारतीय भाषाओं का एक अक्षर कुञ्जीपटल पर एक से अधिक कुञ्जियों को दबाने से भी बन सकता है।

भारतीय भाषाओं का एक अक्षर स्वर, व्यञ्जन, परिवर्तक व अन्य चैत्रिक चिन्हों से मिल के बनता है। यह सभी रोमन अक्षरों की तरह ही कूटबद्ध होते हैं। प्रयोगकर्ता स्वरों, व्यञ्जनों, परिवर्तकों व चैत्रिक चिन्हों को एक क्रम मे टङ्कित करता है। उसके बाद भाषा के नियमों के अनुसार मशीन चलते समय अक्षरों का निर्माण करती है। इस प्रकार प्रत्येक अक्षर मशीन में स्वरों, व्यञ्जनों व परिवर्तकों के अनोखे क्रम से मिलकर बनता है। अक्षरों की कड़ी में इन सबको बोलने के क्रम के अनुसार रखा जाता है।

आपसी स्थिति के अनुसार भारतीय अक्षर एक दूसरे से जुड़ सकते हैं या उन्हें लिखने का तरीका बदल सकता है। किसी भी अक्षर को दिखाने का तरीका अन्य अक्षरों की स्थिति, अक्षरों को दिखाने की मुद्रलिपि, व ऍप्लिकेशन या तन्त्र के पर्यावरण पर निर्भर करता है। इन निर्भरताओं की वजह से, कोड चार्टों में वर्णित देवनागरी अक्षरों के नॉमिनल ग्लिफ़ों से अक्षरों का आकार अलग हो सकता है। साथ ही, अक्षरों की स्थिति की वजह से प्रदर्शित ग्लिफ़ों का क्रम भी परिवर्तित हो सकता है। यह क्रम परिवर्तन अभारतीय लिपियों में अक्सर नहीं देखा जाता है, और यह द्विदिशाई अक्षर क्रम परिवर्तन से अलग है।

हर अक्षर का एक ही द्रैश्यिक प्रस्तुति होती है। लेकिन अक्षर इतने अधिक हैं कि हरेक के लिये अलग अलग ग्लिफ़ नहीं बनाया जा सकता। इसलिये आमतौर पर एक मुद्रलिपि में कुछ टुकड़े ग्लिफ़ होते हैं जिनमें से कार्यक्रम चलते समय अक्षर का निर्माण होता है। अतः एक अक्षर भारतीय भाषा की मुद्रलिपि के कई ग्लिफ़ों को मिलके बनता है। ग्लिफ़ कूटों की स्वरों, व्यञ्जनों व परिवर्तकों के कूटों से सीधा सम्बन्ध नहीं है। लेकिन हर एक अक्षर (जो कि एक ख़ास क्रम में व्यञ्जनों, स्वरों व परिवर्तकों से बनता है) के लिये एक ग्लिफ़ों का क्रम है। इस प्रकार एक से अधिक कुञ्जियों से एक से अधिक ग्लिफ़ बनते हैं, जबके रोमन लिपि में एक कुञ्जी से एक ग्लिफ़ बनता है।

कृपया यूनीकोड-विधि पढ़ें और यू॰टी॰एफ़॰ कूटबन्धन के बारे में जानने के लिये http://www.unicode.org/ को देखें।

एन॰सी॰एस॰टी॰ मुम्बई द्वारा निर्मित इण्डिक्स तन्त्र ऍक्स विण्डोज़ पर अधिकतर ऍप्लिकेशनों को (चाहे टूलकित कोई भी हो) यूनीकोड मानकों के हिसाब से भारतीय अक्षरों को दिखा पाती है। ऍक्स विण्डोज़ के स्तर पर इण्डिक्स ओपन टाइप मुद्रलिपियों व यूनीकोड कूटबन्धन को सँभालती है। इस वजह से अधिकतर ऍप्लिकेशन बिना किसी परिवर्तन या पुनः कम्पाइलेशन के भारतीय लिपियों का इस्तेमाल कर सकती हैं।

एक बार आप इस विधि में वर्णित सभी निर्देशों के अनुसार इण्डिक्स तन्त्र की संस्थापना कर लें तो आप सात समुन्दर पार उड़ कर उस हिचकियों से परेशान करने वाले टल्ली नाविक को एक अच्छी सी चपत भी लगा सकते हैं ... ठीक है, गम्भीरता पूर्वक कहें तो आप देवनागरी और अन्य लिपियों में लैनक्स का आनन्द उठा सकते हैं।